साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
होली  (काव्य)    Print this  
Author:अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh

मान अपना बचावो, सम्हलकर पाँव उठावो ।
गाबो भाव भरे गीतों को, बाजे उमग बजावो ॥
तानें ले ले रस बरसावो, पर ताने ना सहावो ।
भूल अपने को न जावो ।।१।।

बात हँसी की मरजादा से कड़कर हँसो हँसावो ।
पर अपने को बात बुरी कह आँखों से न गिरावो ।
हँसी अपनी न करायो ॥२॥

खेलो रंग अबीर उड़ावो लाल गुलाल लगावो ।
पर अति सुरंग लाल चादर को मत बदरंग बनावो ।
न अपना रंग गॅवाबो ॥३॥

जन्म-भूमि की रज को लेकर सिर पर ललक चढ़ावो ।
पर अपने ऊँचे भावों को मिट्टी में न मिलावो।
न अपनी धूल उड़ावो ॥४॥

प्यार-उमग-रंग में भीगी सुन्दर फाग मचावो ।
मिलजुल जी की गाँठें खोलो हित की गाँठ बँधावो।
प्रीति की बेलि उगावो ||५||

--हरिऔध

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