अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
मुक्तिबोध की कविताएं (काव्य)    Print this  
Author:गजानन माधव मुक्तिबोध | Gajanan Madhav Muktibodh

यहाँ मुक्तिबोध के कुछ कवितांश प्रकाशित किए गए हैं। हमें विश्वास है पाठकों को रूचिकर व पठनीय लगेंगे।

ओ सूर्य, तुझ तक पहुँचने की
मूर्खता करना नहीं मैं चाहता ( मर जाऊँगा )
बस, इसलिए
उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया
के रूप में
मैं क्यों न चमगादड बनूं
व धरित्री की ओर मुँह कर
पैर तेरे ओर करता लटकता ही रहूँ
चूंकि हे मार्तण्ड तुझ तक पहुँचना बिलकुल असम्भव है
इसलिए अपमान करना सहज है वह आत्मसम्भव

[सम्भावित रचनाकाल 1959-60]
साभार - मुक्तिबोध रचनावली दो, संपादक-नेमिचंद्र जैन

 

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