वो भी तो ख़ुश रह सकता था महलों और चौबारों में। उसको लेकिन क्या लेना था, तख्तों-ताज-मीनारों से! वो था सुभाष, वो था सुभाष!
अपनी माँ बंधन में थी जब, कैसे वो सुख से रह पाता! रण-देवी के चरणों में फिर क्यों ना जाकर शीश चढ़ाता? अपना सुभाष, अपना सुभाष!
डाल बदन पर मोटी खाकी, क्यों न दुश्मन से भिड़ जाता! 'जय-हिन्द' का नारा देकर क्यों न अजर-अमर हो जाता! नेता सुभाष, नेता सुभाष!
जीवन अपना दाव लगाकर दुश्मन सारे खूब छिकाकर कहाँ गया वो, कहाँ गया वो? जीवन-संगी सब बिसराकर, तेरा सुभाष, मेरा सुभाष!
मैं तुमको आज़ादी दूंगा लेकिन उसका मोल भी लूंगा। खूं बदले आज़ादी दूंगा बोलो सब तैयार हो क्या? गरजा सुभाष, बरसा सुभाष!
वो था सुभाष, अपना सुभाष! नेता सुभाष, बाबू सुभाष! तेरा सुभाष, मेरा सुभाष! अपना सुभाष, अपना सुभाष! - रोहित कुमार 'हैप्पी' |