लेखक का गुण एक ही करै भँडौती धाय। पुरस्कार पै हो नज़र ग्रांट कहीं मिल जाय॥
तू लिख तारीफ़ मैं और करैं विपरीत। लेखन ऐसे ही चलै गाल बजावन रीति॥
रोज़ चार कर काव्य सृजन एक व्यंग्य को खींच। फ़ेसबुकवा पै छाप कै बड़ौ रचक बन लीज॥
कालजयी रचना करत गुणवत्ता पै ध्यान। कागज़ काले कर बढ़ै तू पीछे छुट जान॥
चाहे लिखते श्रेष्ठ पर दूजन गुट का होज। कूड़ा वा साबित करौ एड़ी चोटी ओज॥
लेखक बड़ बनना चहै दाढ़ी कुरता लेय। यार कलब मैं बैठि कै धुआँधार करि देय॥
भाषा जानत है नहिं नहीं ध्यान में कथ्य। लेखक इतने आ गये पाठक एक न रथ्य॥
अफ़सर बड़े रसूख के रचते भर भर काव्य। हाथ बाँधि छापक खड़ा टेंडर पास कराव्य॥
कविता कोई ना पढ़ै मांगत है उप-न्यास। छापत करता फ़ैसला लेखकन दिशा दिखास॥
बनते साहित्यकार हैं बँटत रहैं गुट माहिं। तेरी रचना कूड़ है मेरी काल जिहारि॥
कविता रचता प्लान करि दिन महिं चार बनात। कविता तो तब ही सजै कवित मनहि बहि जात॥
खुद ही छापै खुद लिखै खुद कौ दे आभार। भारी सर्जक ह्वै रहे गोदामन दिखि बहार॥
बनते रचनाकार हैं बँटत रहत गुट माहिं। तेरी रचना कूड़ है मेरी काल जियाहि॥
बाबा ब्यौपारी बना बेच रहा सब पाहिं। पुत्र जनम की दै दवा अंटी धन न समाहिं॥
उल्टा-पुल्टा लिख दिया सबको बस गरियात। टेढ़ी अभिव्यक्ति कहै व्यंग्यकार कहलात॥
वाक्यों को तोड़त कहीं रहा तोड़ता छंद। कहता कविता रच दई भाव दिखावै मंद॥
एक आइटम चार रेस चार फाइट के सीन। फ़िल्म बनी हिट होयगी ले स्टार दो-तीन॥
लिखने का बस ध्येय यह छपैं किताबें आय। ग्रांट बिदेसी यात्रा बड़ सम्मानन पाय॥
-प्रो. राजेश कुमार |