जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
छवि नहीं बनती (काव्य)    Print this  
Author:सपना सिंह ( सोनश्री )

निराला पर सपना सिंह (सोनश्री) की कविता

निराला जी, निराले थे।
इसलिए तो,
सबको, भाये थे।
आपके, शब्दों में,
जादू था ऐसा,
कि
आज भी,
गूंजते हैं वही,
जेहन में,
बार बार,
कर्नाकाश के,
अक्षय पटल पर ।
अभाव में,
भाव,
आये थे कैसे ?
आज तो,
भाव में भाव,
आता नहीं ।
सोचती हूँ ,
कहाँ से,
उमड़ेगी कविता,
जिसमें,
झलकेगी,
छवि आपकी ।
क्या कहूँ,
शब्द,
नहीं बनते,
भाग, जाते हैं,
आपके,
नाम से, शब्दों के,
चमत्कार से
निराला जी, निराले थे,
इसलिए तो,
सबको,
भाये थे आप ।

- सपना सिंह ( सोनश्री )
#

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश