हंसों के वंशज हैं लेकिन कव्वों की कर रहे ग़ुलामी यूँ अनमोल लम्हों की प्रतिदिन होती देख रहे नीलामी दर्पण जैसे निर्मल मन को क्यों पत्थर के नाम कर दिया
पाने का लालच क्या जागा गाँव की गठरी भी खो बैठे स्वाभिमान, सम्मान सम्पदा गिरवी रख कँगले हो बैठे हरा-भरा संसार न जाने क्यों पतझर के नाम कर दिया
-राजगोपाल सिंह
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