विशाल वटवृक्ष ने अपनी छाया में इधर-उधर फैले, कुछ छोटे वृक्षों से अभिमान के साथ कहा--"मैं कितना विराट् हूँ और तुम कितने क्षुद्र! मैं अपनी शीतल छाया में सदा तुम्हें आश्रय देता हूँ।"
छोटे वृक्षों ने कहा-- "हाँ, हम क्षुद्र हैं, और तुम विराट हो; पर जानते हो, तुम्हारी यह विराटता हमारा रक्तशोषण करके ही फली फूली है!" विराट वट ने एक हुंकार भरी।
छोटे वृक्षों ने एक निश्वास छोड़ा।
- कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
|