है इत लाल कपोल ब्रत कठिन प्रेम की चाल। मुख सों आह न भाखिहैं निज सुख करो हलाल॥
प्रेम बनिज कीन्हो हुतो नेह नफा जिय जान। अक प्यारे जिय की परी प्रान-पुँजी में हान॥
तेरोई दरसन चहैं निस-दिन लोभी नैन । श्रवन सुनो चाहत सदा सुन्दर रस-मै बैन ।।
डर न मरन बिधि बिनय यह भूत मिलैं निज बास । प्रिय हित वापी मुकुर मग बीजन अँगन अकास ।।
तन-तरु चढ़ि रस चूसि सब फूली-फली न रीति । प्रिय अकास-बेली भई तुव निर्मूलक प्रीति ।।
पिय पिय रटि पियरी भई पिय री मिले न आन । लाल मिलन की लालसा लखि तन तजत न प्रान ।।
मधुकर घुन गृह दंपती पन कीने मुकताय । रमा विना यक बिन कहै गुन बेगुनी सहाय ।।
चार चार षट षट दाऊ अस्टादस को सार । एक सदा द्वै रूप धर जै जै नंदकुमार ।।
- भारतेन्दु हरिश्चंद्र
[ भारतेन्दु हरिश्चंद्र के दुर्लभ दोहे व सोरठे ]
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