साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
श्रम का वंदन | जन-गीत (काव्य)    Print this  
Author:गिरीश पंकज

जिस समाज में श्रम का वंदन, केवल वही हमारा है।
आदर हो उन सब लोगों का, जिनने जगत सँवारा है।
होते न मजदूर जगत में, हम सिरजन ना कर पाते।
भवन, सड़क, तालाब, कुऍं कैसे इनको हम गढ़ पाते।
श्रमवीरों के बलबूते ही, अपना वैभव सारा है।
जिस समाज में श्रम का वंदन,केवल वही हमारा है।

जो करते हैं मेहनत पूरी, उनको बस सम्मान मिले।
वे भी मानव हैं दुनिया के, उनको इक पहचान मिले।
उनको भी जीने का हक है, ज्यों अधिकार हमारा है।
जिस समाज में श्रम का वंदन,केवल वही हमारा है।

श्रमवीरों के बलबूते ही, यह सुंदर संसार बना।
विश्व एक उद्यान मनोहर,देखो ख़ुशबूदार बना।
एक रहें मजदूर विश्व के, हमने यही पुकारा है।
जिस समाज में श्रम का वंदन,केवल वही हमारा है.
जो सर्जक इस दुनिया के क्यूँ, उनको चना-चबेना है।
शोषक लोगों से बढ़ कर के, हमको उत्तर लेना है ।
"हर जोर-जुल्म की टक्कर में, संघर्ष हमारा नारा है,"
जिस समाज में श्रम का वंदन,केवल वही हमारा है।।

-गिरीश पंकज

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