हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।
बूंदों की चौपाल  (बाल-साहित्य )    Print this  
Author:प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌ | Prabhudyal Shrivastava

हरे- हरे पत्तों पर बैठे,
हैं मोती के लाल।
बूंदों की चौपाल सजी है,
बूंदों की चौपाल।  

बादल की छन्नी में छनकर,
आई बूंदें मचल मटक कर।
पेड़ों से कर रहीं जुगाली,
बतयाती बैठी डालों पर।
नवल धवल फूलों पर बैठे,
जैसे हीरालाल।
बूंदों की चौपाल॥ 

सर -सर हिले हवा में पत्ते
जाते दिल्ली से कलकत्ते।
बिखर -बिखर कर गिर -गिर जाते,
बूंदों के नन्हें से बच्चे।
रिमझिम बूंदों से गीली हुई,
आंगन रखी पुआल।
बूंदों की चौपाल॥

पीपल पात थरर थर कांपा।
कठिन लग रहा आज बुढ़ापा।
बूंदें, हवा मारती टिहुनी,
फिर भी नहीं खो रहा आपा। 
उसे पता है आगे उसका ,
होना है क्या हाल।
बूंदों की चौपाल॥

-प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌
 ई-मेल: pdayal_shrivastava@yahoo.com

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश