जन-गण मन के देवता, अब तो आंखें खोल महंगाई से हो गया, जीवन डांवाडोल जीवन डाँवाडोल, ख़बर लो शीघ्र कृपालू कलाकंद के भाव बिक रहे बैंगन-आलू कहं 'काका' कवि, दूध-दही को तरसे बच्चे आठ रुपये के किलो टमाटर, वह भी कच्चे
राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर 'क्यू' में धक्का मारकर, पहुंच गये बलवीर पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला कहं 'काका' कवि, करके बंद धरम का कांटा लाला बोले-भागो, खत्म हो गया आटा
- काका हाथरसी
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