वृत्त में क़ैद गोल गोल घूमती धुरी सी माँ
सँभाले हुए गृहस्थी गोवर्धन कृष्ण से पिता
अहं की छौंक बिगाड़ती ज़ायका बेस्वाद रिश्ते
प्रवासी आत्मा देह में तलाशती अपना घर
खारा सा नीर अक्सर धो देता है मन का मैल
मायूस बेल गमले में ढूँढती अपना घर
क्षितिज पर पारद के थाल सा मोहक चांद
किसने खायी? चाँद की आधी रोटी बादल मौन
कानों में डाले सुवासित झुमके लजाती डाली
वट का वृक्ष व्योम को निहारता मैं बुद्ध हुआ
गंगा का तट बनारस की शाम बैरागी मन
आँजुर भर मायके का दुलार माँ का खोंइचा
हवा ने छुआ तरुवर का गात पत्तों-सी झूमी
लहरें लेती तट पर आकर रेत समाधि!
पर्ण मालिनी बसंत में बनाती पुष्पकुटीर!
मलिन काया! अलकों में सजाती बासंती स्वप्न!
-आराधना झा श्रीवास्तव सिंगापुर |