चलो कहीं पर घूमा जाए, थोड़ा मन हल्का हो जाए। सबके, अपने-अपने ग़म हैं, किस ग़म को कम आँका जाए।
अनहोनी को, होना होता, पागल मन को कौन बताए। आँखों में सागर छलका है, खारा जल बहता ही जाए।
कैसे पल हैं, भीगी पलकें, गीली आँखें, कौन सुखाए। कहाँ गए हैं, जाने वाले, चलो किसी से पूछा जाए।
आना-जाना नियम सृष्टि का, गए हुए को कौन बुलाए। तुम तो चले गए निर्मोही, बीता कल मन भुला न पाए।
-आनन्द विश्वास ईमेल: anandvishvas@gmail.com |