जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।
काका हाथरसी की दो हास्य कविताएं  (काव्य)    Print this  
Author:काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

चोटी के कवि
 
बोले माइक पकड़ कर, पापड़चंद ‘पराग’।
चोटी के कवि ले रहे, सम्मेलन में भाग॥
सम्मेलन में भाग, महाकवि गामा आए।
काका, चाचा, मामाश्री, पाजामा आए॥
हमने कहा, व्यर्थ जनता को क्यों बहकाते?
दाढ़ी वालों को भी, चोटी का बतलाते॥

 
दाढ़ी का सम्मान
 
ईर्ष्या करने लग गए, क्लीन शेव्ड इंसान।
फ़िल्म-जगत के बढ गया, दाढ़ी का सम्मान॥
दाढ़ी का सम्मान, देख दाढ़ी को डरती।
वही तारिका आज, मुहब्बत इससे करती॥
‘राजश्री’ ने काका कवि की, लज्जा रख ली।
अमरीकन दाढ़ी वाले से, शादी कर ली॥
 
-काका हाथरसी

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