उड़ना मुझे सिखा दे, पंछी,
दुनिया मुझे दिखा दे, पंछी!
कैसे पर फैला कर उड़ता,
इसकी रीत बता दे, पंछी!
अपने पंखों पर बिठला कर,
चंदा तक पहुंचा दे, पंछी!
जहां ये मेघा तैर रहे हैं,
वहां की सैर करा दे पंछी!
मीठी बोली बोल बोल कर,
आ जा, मन बहला दे, पंछी!
कहां रात की रानी रहती,
इतना मुझे बता दे, पंछी!
चंदा मामा की नगरी की,
डगरी तू दिखला दें, पंछी!
-सरस्वती कुमार 'दीपक'
[नन्ही-मुन्नी ग़ज़लें]