राष्ट्रभाषा के बिना आजादी बेकार है। - अवनींद्रकुमार विद्यालंकार।
देश पर मिटने वाले शहीदों की याद में (विविध)  Click to print this content  
Author:संपादक, भारत-दर्शन

स्वतंत्रता-दिवस के अवसर पर आप सभी को शुभ-कामनाएं।

सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के यज्ञ का आरम्भ किया महर्षि दयानन्द सरस्वती ने और इस यज्ञ को पहली आहुति दी मंगल पांडे ने। देखते ही देखते यह यज्ञ चारों ओर फैल गया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्यां टोपे और नाना राव जैसे योद्धाओं ने इस स्वतंत्रता के यज्ञ में अपने रक्त की आहुति दी। दूसरे चरण में 'सरफरोशी की तमन्ना' लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव आदि देश के लिए शहीद हो गए। तिलक ने 'स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' का उदघोष किया व सुभाष चन्द्र बोस ने 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा' का मँत्र दिया।

अहिंसा और असहयोग का अस्त्र लेकर महात्मा गाँधी और गुलामी की बेड़ियां तोड़ने को तत्पर लौह पुरूष सरदार पटेल ने अपने प्रयास तेज कर दिए। 90 वर्षो की लम्बी संर्घष यात्रा के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता देवी का वरदान मिल सका।

15 अगस्त भारत का स्वतंत्रता दिवस है। आजादी हमें स्वत: नहीं मिल गई थी अपितु एक लम्बे संर्घष और हजारों-लाखों लोगों के बलिदान के पश्चात ही भारत आजाद हो पाया था। देश पर मर-मिटने वाले हजारों शहीदो में से कुछ के संस्मरण इस अँक में प्रकाशित किए जा रहे हैं। हमें विश्वास है पाठकों को स्वतंत्रता -दिवस विशेषांक की सामग्री पठनीय लगेगी। शुभ-कामनाएं!

 

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