प्रिय बापू जी
अगर मन में अपने देशवासियों से मिलने का मन करे तो ऊपर से ही देख कर मन बहला लेना। उससे भी मन न बहले तो एक-दो से सोशल मीडिया पर सम्पर्क बना लेना, मन बहल जायेगा।
अगर भूले से नीचे उतर आए तो आत्मा को बहुत कष्ट होगा आपकी।
आपकी 150वीं वर्षगांठ मनाने के उत्साह में हम भूल ही गए कि आपको तो इस दिखावे से वैसे भी कोई लगाव नहीं था। फिर भी अपने दिल की तसल्ली के लिए हम खूब धूम-धाम से उत्सव मना रहे हैं।
आप देश को जहां छोड़ कर गए थे, वहां से तो वह काफी आगे बढ़ चुका है।
बापू जी, हमने बहुत तरक्की कर ली है - धन, सम्पदा और दिखावे की हमारे पास कोई कमी नहीं है। हम आगे बढ़ते जा रहे हैं दिन पर दिन। धीरे-धीरे पीछे छोड़ते जा रहे हैं अपने मूल्यों को, अपने सिद्धान्तों को और अहिंसा को, जबकि आज उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होने के बावजूद न जाने क्यों उसे गले लगाने में झिझक-सी हो रही है कुछ देशवासियों को।
आपका इस भुलावे में रहना ही अच्छा है कि आपके देशवासी आपकी धरोहर की भलीभांति देखभाल कर रहे हैं क्योंकि भुलावे में जो सुख है वह सत्यता का सामना करने में कहां!
आपके इस जन्मदिन पर इतना ही काफी है। अगले वर्ष फिर मुलाकात होगी। हम फिर कुछ वायदे करेगे, एक-दूसरे से फिर होड़ लगायेंगे आपके प्रति अपनी भक्ति दिखाने की, पर अन्दर से कुछ बदल पायेंगे इसकी कोई गारंटी मैं अभी नहीं दे सकती।
फिर मिलेंगे आपके अगले जन्मदिन पर लम्बे-चौड़े भाषणों, फूलों की मालाओं, कुछ सच्चे और कुछ झूठे वायदों के साथ।
आपकी,
विश्वशांति की प्रतीक्षा में एक भारतीय नारी
- डॉ पुष्पा भारद्वाज वुड, न्यूज़ीलैंड |