दोहा-संग्रह चार वेद षट शास्त्र में, बात मिली हैं दोय । दुख दीने दुख होत है, सुख दीने सुख होय ॥ १ ॥
ग्रंथ पंथ सब जगतके, बात बतावत तीन । राम हृदय, मनमें दया, तन सेवा में लीन ॥ २ ॥
तन मन धन दै कीजिये, निशिदिन पर उपकार। यही सार नर देहमें, वाद-विवाद बिसार ॥ ३ ॥
चींटीसे हस्ती तलक, जितने लघु गुरु देह। सबकों सुख देबो सदा, परमभक्ति है येह ॥ ४ ॥
काम क्रोध अरु लोभ मद, मिथ्या छल अभिमान । इनसे मनकों रोकिबो, साँचों व्रत पहिचान ॥ ५ ॥
श्वास श्वास भूले नहीं, हरिका भय अरु प्रेम। यही परम जय जानिये, देत कुशल अरु क्षेम ॥ ६ ॥ मान धाम धन नारिसुत, इनमें जो न असक्तः । परमहंस तिहिं जानिये, घर ही माहिं विरत ॥ ७ ॥
प्रेिय भाषण पुनि नम्रता, आदर प्रीति विचार। लज्जा क्षमा अयाचना, ये भूषण उर धार ॥ ८ ॥
शीश सफल संतनि नमें, हाथ सफल हरि सेव। पाद सफल सतसंग गत, तव पावै कछु मेव ॥ ९ ॥
तनु पवित्र सेवा किये, धन पवित्र कर दान । मन पवित्र हरिभजन कर, हॉट त्रिविधि कल्यान ॥ १० ॥
[ दोहा-संग्रह, गीता प्रेस, गोरखपुर ] |