अगर तुम राधा होते श्याम। मेरी तरह बस आठों पहर तुम, रटते श्याम का नाम।। वन-फूल की माला निराली वन जाति नागन काली कृष्ण प्रेम की भीख मांगने आते लाख जनम। तुम, आते इस बृजधाम।।
चुपके चुपके तुमरे हिरदय में बसता बंसीवाला; और, धीरे धारे उसकी धुन से बढ़ती मन की ज्वाला। पनघट में नैन बिछाए तुम, रहते आस लगाए और, काले के संग प्रीत लगाकर हो जाते बदनाम।।
--काजी नज़रुल इस्लाम [ 25 मई, 1899 - 29 अगस्त, 1976 ]
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