नारि सोइ बड़भागिनी, जाके पीतम पास। लषि लषि चष सीतल करै, हीतल लहै हुलास ॥ १ ॥
असन बसन भूषन भवन, पिय बिन कछु न सुहाय। भार रूप जीवन भयो, छिन छिन जिय अकुलाय ॥ २ ॥
पिय साँचो सिंगार तिय सब झूठे सिंगार। सब सिंगार रतनावली, इक पिय बिनु निस्सार ॥ ३ ॥
नेह सील गुन बित रहित, कामी हूँ पति होय । रतनावलि भलि नारि हित, पुज्जदेव सम सोय ॥ ४ ॥
पितु पति सुत सों पृथक रहि, पाव न तिय कल्यान । रतनावलि पतिता बनति, हरति दोउ कुल मान ॥ ५ ॥
पति सनमुख हँसमुष रहति, कुसल सकल गृह-काज । रतनावलि पति सुषद तिय, धरति जुगल कुल लाज ॥ ६ ॥
जो मन बानी देह सों, पिर्याहि नाहि दुष देति । रतनावलि सो साधवी, धनि सुष जग जस लेति ॥ ७ ॥
पति के जीवत निधन हूँ, पति अनरूचत काम | करति न सो जग जस लहति, पावति गति अभिराम ॥ ८ ॥
रतनावलि पति सों अलग, कह्यो न बरत उपास । पति सेवत तिय सकल सुष, पावति सुरपुर वास ॥ ६ ॥
दीन हीन पति त्यागि निज, करति सुपति परबीन । दो पति नारि कहायधिक, पावति पद अकुलीन ॥ १0 ॥
धिक सो तिय पर-पति भजति, कहि निदरत जग लोग । बिगरत दोऊ लोक तिहि, पावति विधवा जोग ॥ ११ ॥
जाके कर में कर दयो, मात पिता वा भ्रात । रतनावलि सह वेद बिधि, सोइ कह्यो पति जात ॥ १२ ॥
-रत्नावली *तुलसीदास की पत्नी रत्नावली विदुषी थी। उन्होंने अधिकतर नीति दोहे लिखे हैं। |