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खुद ही बनाया और बिगाड़ा तकदीरों कोमैं मानता नहीं हाथ की लकीरों को।
महलों में रहें या कभी हों बेघरफर्क पडता है कब फकीरों को।
कर्म अपने का फल मियाँ भोगोकोसते क्यों हो भला तकदीरों को।
दुख गरीबों को ही बस नहीं होतेखुशियाँ मिलती नहीं सब अमीरों को।
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