गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर दिन में कभी विश्राम नहीं करते थे। एक बार वे बीमार पड़ गए। डॉक्टरों ने परामर्श दिया कि वे दिन में खाना खाने के बाद थोड़ी देर विश्राम करें। टैगोर ने उनका परामर्श अनसुना कर दिया और पहले की तरह काम करते रहे। स्वास्थ्य और बिगड़ने लगा। शांति निकेतन के अध्यापकों और मित्रों ने उन्हें समझाया, लेकिन उन पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा। एक दिन उनके सहायकों ने सोचा कि गुरुदेव गांधी जी की बात नहीं टालते। यदि वे आकर उन्हें समझाएं तो टैगोर अवश्य मान जाएँगे और यह समाचार गांधीजी तक पहुँचा दिया गया। जब गांधी जी को सारी बातों का पता चला तो वे शांति निकेतन आ पहुँचे।
गुरुदेव दिन का खाना खाने के पश्चात् कुर्सी पर बैठे काम कर रहे थे। गांधी जी ने उनके पास जाकर कहा, 'आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, गुरुदेव। आपको डॉक्टर की सलाह मान कर दिन में कुछ देर विश्राम करना चाहिए।'
टैगोर ने कहा, 'कैसे करूं बापू, जब मैं बारह वर्ष का था, तभी मेरा यज्ञोपवीत हो गया। मैंने उस समय प्रण लिया था कि दिन में कभी विश्राम नहीं करुंगा। सड़सठ साल से उसी का पालन कर रहा हूँ। आप उस प्रण को भंग करने का आदेश दे रहे हैं?'
गाँधी जी बोले, 'मैं प्रण भंग करने को नहीं कह रहा हूँ। मैं तो बस यह कह रहा हूँ कि आप दिन में थोड़ा आराम करें।' टैगोर ने कहा, 'यह कैसे हो सकता है?' गांधी जी ने कहा, ' यह हो सकता है। आप भोजन के बाद कुर्सी पर थोड़ी देर राम नाम जपते हुए भी आराम कर सकते हैं। यह भी आप के काम का एक हिस्सा ही होगा।' यह सुन टैगोर हँस कर बोले, '...तो आप काम के साथ राम का नाम भी जोड़ना चाहते हैं!'
इस प्रकार कर्म के एक पुजारी की सलाह दूसरे कर्म योगी ने मान ली। तत्पश्चात् टैगोर ने दोपहर को खाने के बाद थोड़ी देर के लिए अपना काम छोड़, राम नाम जपते हुए विश्राम करना आरम्भ कर दिया।
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Gandhi and Tagore
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