मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर ने बाँट लिया भगवान को। धरती बाँटी, सागर बाँटा मत बाँटो इंसान को॥
अभी राह तो शुरू हुई है- मंजिल बैठी दूर है। उजियाला महलों में बंदी- हर दीपक मजबूर है॥
मिला न सूरज का सँदेसा - हर घाटी मैदान को। धरती बाँटी, सागर बाँटा मत बाँटो इसान को॥
अब भी हरी भरी धरती है- ऊपर नील वितान है। पर न प्यार हो तो जग सूना- जलता रेगिस्तान है॥
अभी प्यार का जल देना है- हर प्यासी चट्टान को। धरती बाँटी, सागर बाँटा- मत बाँटो इंसान को ॥
साथ उठें सब तो पहरा हो- सूरज का हर द्वार पर। हर उदास आँगन का हक़ हो- खिलती हुई बहार पर॥
रौंद न पाएगा फिर कोई- मौसम की मुसकान को। धरती बाँटी, सागर बाँटा मत बाँटो इंसान को॥
- विनय महाजन |