गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय। जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥ शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सहावन। दोऊ को इक रंग, काग सब भए अपावन॥ कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के। बिन गुन लहै न कोय, सहस नर ग्राहक गुन के॥
बीती ताहि विसार दे, आगे की सुधि लेइ। जो बनि आवै सहज में, ताही में चित्त देइ॥ ताही में चित्त देइ, बात जोई बनि आवै। दुर्जन हँसे न कोइ, चित्त में खता न पावै॥ कह गिरिधर कविराय, यहै करु मन-परतीती। आगे की सुख समुझि, हो बीती सो बीती॥
बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछिताय। काम बिगारै आपनो, जग में होत हँसाय॥ जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै। खान-पान सनमान, राग-रंग मनहिं न भावै॥ कह गिरिधर कविराय, दुःख कछु टरत न टारे। खटकत है जिय माँहि, कियो जो बिना बिचारे।
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग। गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।। तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे। दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।। कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी। सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
कमरी थोरे दाम की,बहुतै आवै काम। खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥ उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै। बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥ कह गिरिधर कविराय, मिलत है थोरे दमरी। सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
साईँ सब संसार में, मतलब का व्यवहार। जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥ तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले। पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥ कह 'गिरिधर कविराय' जगत यहि लेखा भाई। करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय। छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥ जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं। जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥ कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए। पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम। दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥ यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै। पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥ कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी। चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
राजा के दरबार में, जैये समया पाय। साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥ जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए। हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥ कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा। अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
सोना लावन पिव गये, सूना करि गये देश। सोना मिले न पिव मिले, रूपा ह्वैगे केश॥ रूपा ह्वैगे केश, रोय रँग रूप गवाँवा। सेजन को विश्राम, पिया बिन कबहुँ न पावा॥ कह गिरिधर कबिराय लोन बिन सबै अलोना। बहुरि पिया घर आव कहा करिहौं लै सोना॥
- गिरिधर कविराय |