एक ऐसी भी घड़ी आती है जिस्म से रूह बिछुड़ जाती है
अब यहाँ कैसे रोशनी होती ना कोई दीया, ना बाती है
हो लिखी जिनके मुकद्दर में खिजां कोई रितु उन्हें ना भाती है
ना कोई रूत ना भाये है मौसम चांदनी रात दिल दुखाती है
एक अर्से से खुद में खोए हो याद किसकी तुम्हें सताती है
- रोहित कुमार 'हैप्पी'
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