रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं। कलियाँ देख तुम्हें खुश होतीं फूल देख मुसकाते हैं।।
रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबका मन ललचाते हैं। तितली रानी, तितली रानी, यह कह सभी बुलाते हैं।।
पास नहीं क्यों आती तितली, दूर-दूर क्यों रहती हो? फूल-फूल के कानों में जा धीरे-से क्या कहती हो?
सुंदर-सुंदर प्यारी तितली, आँखों को तुम भाती हो। इतनी बात बता दो हमको हाथ नहीं क्यों आती हो?
इस डाली से उस डाली पर उड़-उड़कर क्यों जाती हो? फूल-फूल का रस लेती हो, हमसे क्यों शरमाती हो?
- नर्मदाप्रसाद खरे
#
लेखक | नर्मदाप्रसाद खरे का जीवन-परिचय
जबलपुर, मध्यप्रदेश मे जन्में नर्मदाप्रसाद खरे म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री पद पर आसीत रहे।
'प्रेमा' के सहायक संपादक तथा 'शुभचिंतक' व 'युगारंभ' के संपादक रहे।
आपने 'कविता मंजरी' जैसी पुस्तकों का संपादन भी किया।
आपके प्रमुख कविता संग्रह हैं- 'ज्योति-गंगा तथा 'स्वर-पाथेय। 'रोटियों की वर्षा' इनका बहुप्रशंसित कहानी संग्रह है। |