मग्र विकास के लिए हिन्दी : देवनागरी में या रोमन में ?
अतीत-वर्तमान-भविष्य का ज्ञान सेतु लेखन पद्धति से संभव हुआ। उत्तरोत्तर प्रयोग और परिष्कार से भाषा का मान्य स्वरूप उद्भूत हुआ । वाणी और लेखन की सुसंगत एकरूपता के लिए पाणिनि जैसे मनीषियों ने लिपि का नियमबद्ध निर्धारण किया । लिपि वाणी का दर्पण है । धुंधला दर्पण तो धुंधला बिम्ब। दर्पण की संरचना पर निर्भर करता है कि बिम्ब की स्पष्टता किस कोटि की होगी ।
संस्कृत से उद्भूत भारतीय भाषाओं की लिपियों में क्रम-साम्य है । देवनागरी वर्णमाला में दो-तीन विशिष्ट ध्वनियों के लिए लिपि चिह्न गढ़ कर परिवर्धित देवनागरी वर्णमाला में भारतीय लिपियों के बीच वर्ण प्रति वर्ण स्थापन से लिप्यंतरण आसान है। हिन्दी जनभाषा के रूप में पिछले एक हज़ार वर्ष से विकसित होने लगी । देवनागरी में लिखी गई । देवनागरी को नागरी भी कहा जाता है । हिन्दी और देवनागरी के प्रचार प्रसार के लिए नागरी प्रचारिणी सभा, और भारतीय भाषाओं के बीच संपर्क लिपि नागरी के प्रयोग संवर्धन के लिए नागरी लिपि परिषद् का गठन हुआ ।
भारत की मूल संस्कृति में सहिष्णुता और समावेशन की प्रधानता रही है । विदेशी आक्रमक आए, फारसी को राजभाषा बनाया । लेकिन जन भाषा हिन्दवी जीवित रही। चतुर अंग्रेज़ व्यापारियों ने सहिष्णु भारत को ब्रिटिश उपनिवेश बना लिया, अंग्रज़ी राजभाषा बनी । जनभाषा हिन्दी ने पराधीनता के आक्रोश को जन आन्दोलन में बदल दिया । 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार देवनागरी लिपि में हिन्दी को राजभाषा बनाया गया । लेकिन स्वीकारिता अभी तक पूरी नहीं । भारत और इंडिया का द्वंद कचोटता है ।
कभी कभार देश के ही विद्वान घाव पर नमक छिड़ते रहते हैं । जनभाषा हिन्दी को देवनागरी के बजाय रोमन में लिखने की वकालत करते हैं । 20 मार्च 2010 के हिन्दुस्तान में "क्षितिज पर खड़ी रोमन हिन्दी" सम्पादकीय छपा । हिन्दी की लिपि पर विवाद छिड़ा । 20 फरवरी 2013 को BBC विश्व सेवा पर बहस छिड़ी - Could a new Phonetic Alphabet promote world peace ? IPA की बात हुई । वैज्ञानिक देवनागरी वर्णमाला की बात दबी रह गई ।
8 जनवरी 2015 को दैनिक भास्कर में चेतन भगत का लेख छपा - "भाषा बचाओ, रोमन हिन्दी अपनाओ" । 11 जनवरी 2015 को Times of India चेतन भगत का अंग्रज़ी में लेख छपा - "Scripting Change: Bhasha bachao, Roman Hindi apanao". दोनों लेखों का एक ही आशय । हिन्दी विमर्श पर चेतन भगत को जमकर कोसा गया ।
मैंने परिस्थिति, काल, कारण आदि पक्षों पर विचार किया । चेतन भगत आई. आई. टी. दिल्ली से मेकेनीकल इंजीनियरिंग का स्नातक और आई. आई. एम. अहमदाबाद से प्रबन्धन स्नातक है, ख्याति प्राप्त लेखक है, चिंतक है, हिन्दी प्रेमी है। चेतन ने चेताया है कि हिन्दी जगत राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर रण नीति बनाने में असमर्थ रहा है । संख्या में संस्थाएं, संस्थान हिन्दी जगत में बहुतेरे और बहुसुरे । जनसामान्य में, युवा वर्ग में हताशा है, निराशा है, और अस्तित्व के लिए नए मार्ग की तलाश है । चेतन भगत ने इसी मानसिकता को अभिव्यक्ति दी है ।
देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी स्वतंत्र भारत की राजभाषा बनी । 67 साल में कार्यान्वयन में हिन्दी की स्वीकारिता अभी तक पूरी नहीं । राज प्रशासन में प्रयोग नगण्य है । प्रति वर्ष सितम्बर में हिन्दी पखवाड़े मनाने की रस्में होती आ रही हैं । न्यायालयों में अंग्रेज़ी ही मान्य है, जो मात्र 5 - 7 प्रतिशत जनसंख्या को ही समझ आती है । गूंगा न्याय, बहरी जनता । सिविल सेवाओं में प्रतिभा की खोज अंगेज़ी के माध्यम से है । सूचना प्रौद्योगिकी के विकास को सरकारी स्वीकृति / मान्यता मिलने में अति विलम्ब होता है । INSCRIPT की-बोर्ड का मानक ले-आउट 1983 में घोषित हुआ । स्टाफ सलेक्शन बोर्ड ने इसे 30 वर्ष बाद 2013 में टंकण परीक्षाओं के लिए मान्यता दी । INSCRIPT द्विलिपिक रोमन-देवनागरी की-बोर्ड TVS कम्पनी ने 1983 में बनाया, लेकिन किसी सरकारी विभाग ने नहीं खरीदा । आज भी कार्यालयों में द्विलिपिक रोमन-देवनागरी की-बोर्ड नहीं मिलेंगे । भारत सरकार के इलेक्ट्रोनिकी विभाग ने जुलाई 1983 में ISSCII-83 मानक 8-बिट कोड प्रकाशित किया । इसका संशोधित संस्करण अगस्त 1988 में ISCII (Indian Script Code for Information Interchange) मानक कोड प्रकाशित किया। इसी को भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने 1991 में ISCII मानक IS13194:1991 प्रकाशित किया ।
इसमें रोमन के लिए ASCII है, और भारतीय भाषाओं के बीच लिप्यंतरण का प्रावधान था । इसके आधार पर ही वेब आधारित यूनीकोड में भारतीय भाषा लिपियों को स्थान मिला । अद्यतन यूनीकोड 7.0 देवनागरी के कोड में परिवर्धित देवनागरी को कोदित किया गया है । दक्षिण भारत की कुछ भाषाओं की विशिष्ट ध्वनियों के संकेत वर्णमाला में क्रमानुसार जोड़े गए हैं । संदर्भ - www.unicode.org/PDF/U0900.pdf
आज भी उत्तर भारत में किसी तकनीकी कॉलेज / संस्थान में कम्प्यूटर विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी के स्नातक कोर पाठ्यक्रम में यूनीकोड, UTF-8, UTF-16 और भारतीय भाषा संसाधन शामिल नहीं हैं । इंटरनेट एक्सप्लोरर, क्रोम, फायरफोक्स आदि वेब ब्राउज़र पर देवनागरी के यूनीकोड समर्थित फोंट 2-3 से अधिक रोमन की भाँति नहीं मिलते । यूटिलिटीज़ नहीं मिलती । भारत का कोई वेब ब्राउज़र प्रचलन में नहीं है । आज भी एक मोबाइल फोन से दूसरे फोन को SMS सन्देश कई मित्रों को अनर्थ चिह्नों में गार्वेज़ मिलता है । इसलिए मजबूरी में संदेश रोमन में भेजते हैं । यह सच है कि प्रौद्योगिक सम्भावनाएं बहुत हैं, लेकिन सभी डिवाइस / उपकरणों पर प्रयोग-सरल सार्वजनिक उपलब्धता का अभाव है । प्रौद्योगिक कम्पेटिबिलिटी सुनिश्चित करना सरकार का दायित्व है ।
2013 में हिन्दी के भाषाविदों की समिति की सिफारिश के आधार पर सरकार ने वैज्ञानिक देवनागरी लिपि का नया अवैज्ञानिक मानक सार्वजनिक चर्चा के बिना घोषित किया । उदाहरण के लिए एक ध्वनि "द्वि' अक्षर को 'द्' और 'वि' की दो ध्वनि इकाइयों में बांटने से छात्रों के उच्चारण भ्रष्ट हो रहे हैं । कम्प्यूटर से स्पीच पहचान में भी सहायक नहीं ।
सभी प्रौद्योगिक उपकरणों में रोमन जैसा प्रयोग-सरल विकल्प देवनागरी में क्यों नहीं ? हिन्दी जगत और सरकार के बीच संवाद का अभाव प्रतीत होता है ।
भूमंडलीकरण की ज्वाला ने जनभाषा हिन्दी को दूर दूर तक झुलसा दिया है। नौकरी के लिए कम्यूनिकेशन स्किल अंग्रेज़ी में सिखाई जाती हैं । समाज में नौकरी दिलाने में हिन्दी को हेय और अंगेज़ी को श्रेय माना जाने लगा है । यह सामाजिक मजबूरी है । मनोवैज्ञानिक स्तर पर विचार करें तो भारत में 65 प्रतिशत जनसंख्या वाले युवा वर्ग को बढ़ने की चाह है, लेकिन जनभाषा हिन्दी में गुणवत्तापूर्ण तकनीकी शिक्षा, प्रशिक्षण और नौकरी के अवसर क्षीण अथवा न मिलने के कारण रोमन के प्रयोग के लिए आकर्षण है ।
हिन्दी जगत ने इस विकराल समस्या के समाधान के लिए क्या रणनीति बनाई है ?
रोमन हिन्दी के पक्षधर नीति निपुण विद्वानों से निवेदन है कि वे भारत की संस्कृति, परम्परागत ज्ञान भंडार, प्रायोगिक साक्षरता, विशाल युवा शक्ति, रचनात्मकता, नवाचार सम्भावनाओं आदि पर विचार कर ऐसे तर्क संगत सुझाव दें जिससे भारत कौशल सम्पन्न बने, विकास तेजी से हो, बहुआयामी हो । कतिपय विचारणीय तथ्य इस प्रकार हैं -
1. भारत की जनसंख्या 126 करोड़ है । जबकि विकसित देश जपान की 12.6 करोड़ है, जर्मनी की 8.2 करोड़ है, फ्रांस की 6.4 करोड़ है, साउथ कोरिया की 4.9 करोड़ है । इन देशों का विकास अंग्रेज़ी में नहीं अपितु उनकी अपनी जनभाषाओं क्रमश: जापानी, जर्मन, फ्रेंच, कोरियन के माध्यम से हुआ ।
2. भारत की लगभग 50% जनसंख्या देवनागरी में लिखती पढ़ती है; अन्य 10% लोग देवनागरी में लिखे को पढ़ समझ लेते हैं । इस प्रकार 60% लोग अर्थात् करीब 75.5 करोड़ भारतीय देवनागरी प्रयोग में सहज हैं । जबकि लगभग 10% भारतीय रोमन में पढ़ सकते हैं ।
3. पठन-पाठन शब्द स्तर पर सरल , सहज और तेजी से होता है । शब्द इकाई के रूप में प्रचलित लिपि में सुगम ग्राह्य होता है । इस प्रकार रोमन में हिन्दी कठिन होगी, श्रमसाध्य होगी, और हिन्दी भाषा से विकर्षण का कारण होगी । युवा वर्ग ऐसी हिन्दी को छोड़ कर अंग्रेज़ी को अपनाने में श्रम करेगा ।
4. संगीत, कला, आयुर्वेद, ज्योतिष, कृषि विज्ञान, आध्यात्म आदि परंपरागत ज्ञान देवनागरी में विपुल मात्रा में है । करोड़ों पृष्ठों के रोमनीकरण और मुद्रण के लिए कई लाख करोड़ रुपए की 10-20 वर्षीय योजना बनानी होगी । कोई भी लोक तांत्रिक सरकार ऐसी अनुपयोगी योजना के लिए धन आबंटन नहीं करेगी । ऐसी स्थिति में भारत के बहुसंख्य अपने ही अमूल्य ज्ञान-विज्ञान से वंचित रहेंगे । करुण क्रन्दन से विकास रुकेगा, अशांति बढ़ेगी, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से हिन्दी भाषी दयनीयतर हालत में होंगे ।
5. वैज्ञानिक लिपि देवनागरी में स्वर, व्यंजन अलग हैं, क्रम में हैं । इसका लिपि व्याकरण है, जिससे लेखन में एकरूपता सुनिश्चित होती है । व्यंजन स्वर हीन है, एक या अधिक व्यंजनों के योग और स्वर के संयोग से अक्षर बनता है जो इन वर्णों का ध्वन्यात्मक यौगिक है, मिश्रण नहीं है ।
6. रोमन लिपि ध्वन्यात्मक नहीं है । हिन्दी के साथ अंग्रेज़ी के भी शब्द हो सकते हैं । अंग्रेज़ी-हिन्दी के शब्दों को अलग-अलग ढ़ंग से उच्चारण करना पड़ेगा । ऐसी खिचड़ी प्रस्तुति से न तो लेखक को और न ही पाठक को सहजता का अनुभव होगा । सहजता और एकरूपता के बिना संप्रेषणीयता बहुत कम होगी। परिणाम होगा हिन्दी से विकर्षण, और युवा वर्ग अंग्रेज़ी सीखने के लिए पसीना बहाएगा ।
7. रोमन हिन्दी में लिखने के लिए कोई एक मानक लिप्यंतरण तालिका अर्थात् ट्रांसलिटरेशन टेबल नहीं है । अपनी-अपनी ढ़ापली अपना-अपना राग । सदियों से प्रयुक्त शब्द ऋतु, प्रण, पृथ्वी, उत्कृष्ट, लक्ष्मी, विशेष, सोSहम्, रावण, आदि का उच्चारण भ्रष्ट होगा । ये शब्द विलुप्त हो जावेंगे ।
8. हिन्दी के अतिरिक्त मराठी, मैथिली, संथाली, डोगरी, सिन्धी, संस्कृत आदि कई भाषाओं में साहित्य सृजन देवनागरी में हुआ है और हो रहा है । रोमनीकरण से सर्जना ठहर जाएगी, समाज मूक बनने लगेगा । विकास क्रम का तिरोभाव होगा ।
9. किसी भी भाषा की उच्चारण में शुद्धता और एकरूपता वांछनीय है । अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन आदि भाषाओं के प्रारंभिक पाठों को देवनागरी में उच्चरित कराने से विद्यार्थियों को आसानी होगी । देवनागरी के आधार पर IPA (भारतीय संस्करण) बनाया जा सकता है ।
सार संक्षेप में
देवनागरी के सम्बन्ध में भारत के विशाल युवा वर्ग की मानसिकता, सामाजिक स्वीकारिता, और राजनीतिक प्रतिबद्धता को हिन्दी जगत संगठित होकर विश्लेषण करे । सभी प्रौद्योगिक उपकरणों में रोमन जैसा प्रयोग-सरल विकल्प देवनागरी में हो । देवनागरी में लिखी जाने वाली जनभाषा हिन्दी में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार के समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित किए जावें । तदनुसार कार्यान्वयन के लिए सरकार पर दबाब डाले और सावधि समीक्षा करे ।
चेतन भगत ने हिन्दी जगत को चेताया है - उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।
- डॉ० ओम विकास Dr.omvikas@gmail.com मोबाइल: +91-9868404129
|