मैं नहीं समझता, सात समुन्दर पार की अंग्रेजी का इतना अधिकार यहाँ कैसे हो गया। - महात्मा गांधी।
कबीर किंवंदतियां (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

कबीर का जीवन

नीरु जुलाहा काशी नगरी में रहता था। एक दिन नीरु अपना गवना लेने के लिए, ससुराल गया। नीरु अपनी पत्नी नीमा को लेकर आ रहा था। रास्ते में नीमा को प्यास लगी। वे लोग पानी पीने के लिए लहर तालाब पर एक अति सुंदर बालक को हाथ-पाँव हिलाते देखा। उसने बालक को अपनी गोद में उठा लिया और अपने पति नीरु के लौट आई। फिर सारा वृतांत कह सुनाया।

"नीरु नाम जुलाहा, गमन लिये घर जाय।
तासु नारि बढ श्रागिनी, जल में बालक पाय।''

नीरु जुलाहे ने बालक को देखकर पूछा कि यह किसका बालक है और वह इसे कहाँ से  लाई ? नीमा ने कहा कि इसे उसने तालाब में पाया है। नीरु ने कहा, इसे जहाँ से लायी है, वहीं रख आओ। मगर नीमा ने कहा कि इतने सुंदर बच्चे को मैं अपने पास रखुँगी। नीरु ने अपनी स्री से कहा कि इससे अपनी जग हँसाई होगी। लोग कहेंगे कि गवना में मैं अपनी स्री के साथ, बालक भी ले आया। नीरु को तत्कालीन समाज के लोगों का डर लग रहा था। उसने कहा :-

"नीरु देख रिसवाई, बालक देतू डार।
सब कुटम्ब हांसी करे, हांसी मारे परिवार।''

नीमा के न मानने पर नीरु-नीमा की बहुत कहा-सुनी हुई। नीमा अपनी जगह अडिग रही, इतने में बालक स्वयं ही बोल उठा,

"तब साहब हूँ कारिया, लेचल अपने धाम।
युक्ति संदेश सुनाई हौं, मैं आयो यही काम।
पूरब जनम तुम ब्राह्मन, सुरति बिसारी मौहि।
पिछली प्रीति के कारने, दरसन दीनो तोहि।'

अर्थात् हे नीमा ! मैं तुम्हारे पूर्व जन्म के प्रेम के कारण तुम्हारे पास आया हूँ। तुम मुझको मत फेंको और अपने घर ले चलो। यदि तुम मुझको अपने घर ले गयी, तो मैं तुमको आवागमन ( जन्म-मरण ) के झंझट से छुड़ा कर, मुक्त कर दूँगा। तुम्हारे सारे दुख व संताप मैं हर लूँगा।

बालक के इस प्रकार बोलने से, नीमा निर्भय हो गई और नीरु भी बालक को साथ ले चलने को सहमत हो गया -

"कर गहि बगि उठाइया, लीन्हों कंठ लगाया
नारि पुरुष दोउ हरषिया, रंक महा धन पाय।"

वे दोनों प्रसन्नतापूर्वक बालक को लेकर अपने घर चले गए।

[कहत कबीर संकलन]

 

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कबीर का नामकरण

 

काशी के लोगों को जब मालूम हुआ कि नीरु अपनी पत्नी के साथ एक बालक भी लाया है, तो लोग जमा होकर हँसने लगे। नीरु ने तब बालक के बारे में सारी बातें सुनाई।

नीरु बालक का नाम धरवाने के लिए एक ब्राह्मण के पास गया। जब ब्राह्मण अपना पत्रा लिए नाम के बारे में विचार ही रहा था कि बालक ने कहा -  'हे ब्राह्मण ! मेरा नाम कबीर है। दूसरा नाम रखने की चिंता मत करो।'

यह बात सुनकर वहाँ इकट्ठा सभी लोग चकित हो गए। हर तरफ इस बात की चर्चा होने लगी कि नीरु के घर में एक बच्चा आया है, वह बातें करता है।

साखी :- कासी उमगी गुल श्रया, मोमिनका का घर घेर।
कोई कहे ब्राह्मा विष्णु हे, कोई कह इंद्र कुबेर।।
कोई कहन वरुन धर्मराय हे, कोई कोइ कह इस,
सोलह कला सुमार गति, को कहे जगदीश।।

 

काजी का नाम धरने आना


ब्राह्मण के चले जाने पर, नीरु ने काजी को बुलाया और बालक का नाम रखने के लिए कहा। काजी, कुरान और दूसरी किताबें खोलकर बालक का नाम देखने लगा। कुरान में काजी को चार नाम मिले - कबीर, अकबर, किबरा और किबरिया। ये चारों नाम देखकर काजी अपने दांतों के तले उँगलियाँ दबाने लगा। वह हैरान होकर बार- बार कुरान खोलकर देखता था, लेकिन समस्त कुरान काजी को इन्हीं चार नामों से भरा दिखाई देता था। काजी के मन में अत्यंत संदेह उत्पन्न होने लगा कि ये चारों नाम तो खुदा के हैं। काजी गंभीर चिंता में डूब गया कि क्या करना चाहिए। हमारे धर्म की प्रतिष्ठा दाव पर लग गई है। इस बात को गरीबदास ने इस प्रकार कहा है:-

काजी गये कुरान ले, धर लड़के का नाव।
अच्छर अच्छरों में फुरा, धन कबीर वहि जाँव
सकल कुरान कबीर है, हरफ लिखे जो लेख।
काशी के काजी कहै, गई दीन की टेक।

जब काशी के सभी काजियों को यह समाचार मिला, तो सभी बड़े ही चिंतित हुए। वे कहने लगे कि अत्यंत आश्चर्य का विषय है कि समस्त कुरान में कबीर ही कबीर है। सभी सोचते रहे, क्या उपाय किया जाए कि इस जुलाहे के पुत्र का इतना बड़ा नाम न रखा जा सके। पुनः सभी काजियों ने कुरान खोलकर देखा, तो अब भी वही चारों नाम दिखाई दे रहा था।

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