अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
स्वर किसका? (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:डॉ प्रेम नारायण टंडन

ईश्वर की खोज करते-करते हारकर जीव ने कहा - बड़ी मूर्खता की मैंने जो उस निराकार को पाने की आशा से अब तक भटकता फिरा ।

तभी उसे सुनाई दिया - पगले, तेरे खोज में लगने के पूर्व से ही मैं तेरे साथ हूं । तुझे फुर्सत भी तो मिले मुझे देखने की !

और जीव ईश्वर को सुनता तो है, पर पहचानता नहीं । वह आज भी चकित होकर सोचता है यह स्वर किसका है!

- डॉ प्रेम नारायण टंडन

 

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