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लघुकथाएं
लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँ व प्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें।इस श्रेणी के अंतर्गत पढ़ें
अपने-अपने आग्रह - बलराम अग्रवाल |
"तुझे मेरा नाम मालूम नहीं है क्या?" वह उस पर चीखा। |
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उसकी ज़रूरत | लघुकथा - डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी |
उसके मन में चल रहा अंतर्द्वंद चेहरे पर सहज ही परिलक्षित हो रहा था। वह अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा था, “चार साल हो गए इसकी बीमारी को, अब तो दर्द का अहसास मुझे भी होने लगा है, इसकी हर चीख मेरे गले से निकली लगती है।“ |
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इस पार न सही | लघुकथा - सुरेंद्र कुमार अरोड़ा |
"आज फिर वहाँ क्या कर रहे थे?" |
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भाई | लघुकथा - अरिमर्दन कुमार सिंह |
सुबह-सुबह लीला जब जॉगिंग करके घर में दाखिल हुई तो उसने पति लीलेश को फोन पर बात करते हुए देखा। पति के फोन काटते ही लीला ने बातचीत का सार तत्व समझ व्यंग्य बाण छोड़ा, "लगता है कि तुम्हारे भाई भरत का फोन था? फिर पैसे की मांग की गई है न?" |
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गिरहकट - दिलीप कुमार |
गिरहकट : दिलीप कुमार की लघुकथापन्ना, मैक, लंबू, हीरा, छोटू इनके असली नाम नहीं थे लेकिन दुनिया अब इसे ही इनका असली नाम मानती थी। |
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