जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

भाई | लघुकथा (कथा-कहानी)

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रचनाकार: अरिमर्दन कुमार सिंह

सुबह-सुबह लीला जब जॉगिंग करके घर में दाखिल हुई तो उसने पति लीलेश को फोन पर बात करते हुए देखा। पति के फोन काटते ही लीला ने बातचीत का सार तत्व समझ व्यंग्य बाण छोड़ा, "लगता है कि तुम्हारे भाई भरत का फोन था? फिर पैसे की मांग की गई है न?"

लीलेश ने बात न बढ़ाने की गरज से शाब्दिक मितव्ययिता अपनाते हुए कहा, "हॉं।"

लीला ने पति को अर्थशास्त्र समझाते हुए कहा,"न जाने तुम कब समझोगे। अपने दोनों बेटों की भी चिंता किया करो। भाई को कब तक लादे फिरोगे। जब से आई हूँ तब से तुम्हारी यही हरकत देख रही हूँ। अरे, कभी शादी-विवाह पड़ा या कोई पर्व-त्योहार हुआ तो कुछ रुपए-पैसे आदमी दे देता है। इसके आगे का भाईचारा ठीक नहीं है।"

लीलेश पत्नी की बातों को अनसुना करते हुए बाहर निकल गया।

लीला ने पति पर अतिरिक्त दबाव डालने के उद्देश्य से बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत अपने बेटे रुद्रांश से एक दिन कहा, "बेटा, मैं तो तुम्हारे पापा को समझाते-समझाते थक गई हूँ। अभी गांव से उनके भाई का फोन आया है कि आलू की फसल को पाला मार गया है। पैसे की दरकार है। अगर तुम्हारे पापा इसी तरह भामा शाह बने रहे तो तुम लोगों के लिए कुछ नहीं बचेगा। थोड़ा तुम भी उन्हें समझाओ न। शायद तुम्हारी बातों का उनपर कुछ असर हो जाए।"

रुद्रांश ने लीला से कहा, "मॉं, काका ने पापा के लिए बहुत कुछ किया है। उन्हीं की बदौलत पापा की पढ़ाई-लिखाई हुई तथा नौकरी लगी। जिस किसी सामान पर भी तुम हाथ रख देती हो पापा उसे खरीदवाते जरूर हैं। हम दोनों भाइयों की भी हर फरमाइश पूरी करते रहे हैं। वो  कमाते हैं। अगर उसमें से कुछ अपने भाई के ऊपर खर्च कर भी देते हैं तो क्या बिगड़ जाता है? मैं उनका हाथ पकड़ने तो नहीं जाऊंगा।"

लीला पर बातों का असर न पड़ता देख रुद्रांश ने माँ की ममता का छोर टटोलते हुए कहा, 
"माँ, यदि मैं अपने भाई रुद्राक्ष की मदद करूं तो तुम बुरा मानोगी क्या?"

- अरिमर्दन कुमार सिंह
  बक्सर, बिहार
  मोबाइल : 9832594994
  ई-मेल : arismathar10@gmail.com

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