उसके मन में चल रहा अंतर्द्वंद चेहरे पर सहज ही परिलक्षित हो रहा था। वह अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा था, “चार साल हो गए इसकी बीमारी को, अब तो दर्द का अहसास मुझे भी होने लगा है, इसकी हर चीख मेरे गले से निकली लगती है।“
...और उसने मुट्ठी भींच कर दीवार पर दे मारी, लेकिन अगले ही क्षण हाथ खींच लिया। कुछ मिनटों पहले ही पत्नी की आँख लगी थी, वह उसे जगाना नहीं चाहता था। वह वहीँ ज़मीन पर बैठ गया और फिर सोचने लगा, “सारे इलाज कर लिये, बीमारी बढती जा रही है, क्यों न इसे इस दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा...? नहीं... लेकिन...” आखिरकार उसने दिल कड़ा कर वह निर्णय ले ही लिया, जिस बारे में वह कुछ दिनों से सोच रहा था।
घर में कोई और नहीं था, वह चुपचाप रसोई में गया, पानी का गिलास भरा और अपनी जेब से कुछ दिनों पहले खरीदी हुई ज़हर की पुड़िया निकाली। पुड़िया को देखते ही उसकी आँखों में आँसू तैरने लगे, लेकिन दिल मज़बूत कर उसने पानी में ज़हर डाल दिया और एक चम्मच लेकर कांपते हाथों से उसे घोलने लगा।
रसोई की खिड़की से बाहर कुछ बच्चे खेलते दिखाई दे रहे थे, उनमें उसका पोता भी था, वह उन्हें देखते हुए फिर पत्नी के बारे में सोचने लगा, “इसकी सूरत अब कभी... इसके बिना मैं कैसे रहूँगा?”
तभी खेलते-खेलते एक बच्चा गिर गया और उस बच्चे के मुंह से चीख निकली। चीख सुनते ही वह गिलास फैंक कर बाहर भागा, और पोते से पूछा, "क्या हुआ बेटा?"
पोते ने उसे आश्चर्य से देखा, क्योंकि पोता तो गिरा ही नहीं था, अलबत्ता गिलास ज़रूर वाशबेसिन में गिर कर ज़हरीले पानी को नाली में बहा चुका था। ...और वह भी चैन की सांस लेकर अंदर लौट आया।
- डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी
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