जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

गिरहकट (कथा-कहानी)

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रचनाकार: दिलीप कुमार

गिरहकट : दिलीप कुमार की लघुकथा 

पन्ना, मैक, लंबू, हीरा, छोटू इनके असली नाम नहीं थे लेकिन दुनिया अब इसे ही इनका असली नाम मानती थी।

मंगल प्रसाद गुप्ता ही पन्ना था, मथुरादास पांडे मैक बन चुका था। लंबू का असली नाम खलील अहमद था। अब का हीरा कभी हरजिंदर हुआ करता था और आफताब को सब छोटू के नाम से जानते  थे।

वैसे तो ये लोग अलग-अलग धर्मों के थे मगर एक ही चीज थी जो इन्हें जोड़ती थी वो था इनका लक्ष्य। ये मजहब से अलग मगर मकसद से एक थे। इन सभी का इकलौता लक्ष्य था दूसरे की जेबों से माल उड़ाना।

ये पोशीदा भेड़िये थे जिन्हें दुनिया गिरहक़ट के नाम से जानती थी।

ये शहरी जंगलात के भेड़िये थे। मगर ये भी वास्तविक जंगल के भेड़ियों की तरह समूह में शिकार किया करते थे। जिसने कामयाबी से  शिकार किया सबसे पहला और बड़ा हिस्सा उसका, लेकिन झुंड में सभी को हिस्सा मिलता था।
 
कोई रेकी करता था। कोई पॉकेट पर हाथ मारता था तो कोई बटुआ लेकर भागता था, कुछ का रोल इसके बाद शुरू होता था। इन सभी शहरी भेड़ियों ने पूरी ट्रेनिंग ले रखी  थी।

टास्क शुरू हुआ, एक वृद्ध महिला को पन्ना ने स्पॉट किया और उसने मैक को काम करने का इशारा किया।

 
बस में चढ़ने की जद्दोजहद कर रही वृध्द महिला को पन्ना ने बस में चढ़ाते हुए कहा –

“आंटी जी ,जल्दी कीजिये मैं सहारा देता हूँ ना आपको "ये कहकर बस में चढ़ाते हुए उसने उस वृध्द महिला का  छोटा सा बटुआ ब्लाउज से खींच लिया।

आंटी पन्ना की ये हरकत जान गयीं । उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया । भीड़ जब तक कुछ समझ पाती तब तक पन्ना ने  बटुआ  पहले से बस में मौजूद मैक की तरफ उछाल दिया। पन्ना  बस में घिर गया मगर मैक ने बटुआ कैच किया और तत्काल बस की खिड़की से बाहर कूद गया।

सब लोग बटुआ लिए मैक की तरफ भागे तब तक भीड़ से हाथ झटक कर पन्ना भी भाग निकला।

पकड़े जाने पर मैक की बेतहाशा पिटाई शुरू हो गई।

गिरहकट को पीट रहे दोनों  युवकों के सामने अचानक एक तीसरा युवक आया। वो पिटाई शांत कराते हुए बोला –

“बहुत पिट चुका है ये अब और ज्यादा मारोगे तो ये मर जायेगा। फिर पुलिस का लफड़ा हो जायेगा। वैसे भी पैसे तो आंटीजी को वापस मिल ही चुके हैं । एक काम करो इसे कोतवाली ले चलते हैं। वहाँ पर पुलिस इनकी कायदे से तुड़ाई भी करेगी और जेल भी भेज देगी ,तब इनकी अक्ल ठिकाने आएगी "।

तीसरे युवक की बात सुनकर दोनों युवकों ने पीटना बंद कर दिया औऱ भीड़ ने भी तीसरे युवक की बात का समर्थन किया , वास्तव में पुलिस के लफड़े में कोई नहीं पड़ना चाहता था चाहे पीड़ित हो या भीड़।

भीड़ ने न सिर्फ उन तीनों युवकों की तारीफ की बल्कि उनकी सजगता के प्रति कृतज्ञता भी व्यक्त की।

मैक को पीटने वाले लंबू और हीरा थे। रस्सी लाने वाला युवक छोटू था।

पकड़ने, पीटने और पुलिस तक पहुंचाने की बात करने वाले सब गिरहकट ही थे जो जंगली भेड़ियों की तरह समूह में शिकार पर थे ।

-दिलीप कुमार

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