जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।

सूरदास | Surdas | Profile & Collections

सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।

सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है। "साहित्य लहरी' सूर की लिखी रचना मानी जाती है। इसमें साहित्य लहरी के रचना-काल के सम्बन्ध में
निम्न पद मिलता है -

मुनि पुनि के रस लेख ।
दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख ।।

इसका अर्थ संवत् १६०७ वि० माना जाता है, अतएवं "साहित्य लहरी' का रचना काल संवत् १६०७ वि० है। इस ग्रन्थ से यह भी प्रमाणित होता है कि सूर के गुरु श्री बल्लभाचार्य थे। इस आधार पर सूरदास का जन्म सं० १५३५ वि० के लगभग ठहरता है, क्योंकि बल्लभ सम्प्रदाय की मान्यता है कि बल्लभाचार्य सूरदास से दस दिन बड़े थे और बल्लभाचार्य का जन्म उक्त संवत् की वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसलिए सूरदास की जन्म-तिथि वैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् १५३५ वि० समीचीन मानी जाती है। उनकी मृत्यु संवत् १६२० से १६४८ वि० के मध्य मान्य है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् १५४० वि० के सन्निकट और मृत्यु संवत् १६२० वि० के आसपास मानी जाती है।


जन्म स्थल

'चौरासी वैष्णव की वार्ता' के आधार पर उनका जन्म रुनकता अथवा रेणु का क्षेत्र (वर्तमान जिला आगरान्तर्गत) में हुआ था। मथुरा और आगरा के बीच गऊघाट पर ये निवास करते थे। बल्लभाचार्य से इनकी भेंट वहीं पर हुई थी। "भावप्रकाश' में सूर का जन्म स्थान सीही नामक ग्राम बताया गया है। वे सारस्वत ब्राह्मण थे और जन्म के अंधे थे।

"आइने अकबरी' में (संवत् १६५३ वि०) तथा "मुतखबुत-तवारीख' के अनुसार सूरदास को अकबर के दरबारी संगीतज्ञों में माना है।


अधिकतर विद्वानों का मत है कि सूर का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में ये आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे।

खंजन नैन रुप मदमाते ।
अतिशय चारु चपल अनियारे,
पल पिंजरा न समाते ।।
चलि - चलि जात निकट स्रवनन के,
उलट-पुलट ताटंक फँदाते ।
"सूरदास' अंजन गुन अटके,
नतरु अबहिं उड़ जाते ।।


क्या सूरदास अंधे थे ?

सूरदास श्रीनाथ भ की "संस्कृतवार्ता मणिपाला', श्री हरिराय कृत "भाव-प्रकाश", श्री गोकुलनाथ की "निजवार्ता' आदि ग्रन्थों के आधार पर, जन्म के अन्धे माने गए हैं। लेकिन राधा-कृष्ण के रुप सौन्दर्य का सजीव चित्रण, नाना रंगों का वर्णन, सूक्ष्म पर्यवेक्षणशीलता आदि गुणों के कारण अधिकतर वर्तमान विद्वान सूर को जन्मान्ध स्वीकार नहीं करते।"

श्यामसुन्दरदास ने इस सम्बन्ध में लिखा है - "सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।'' डॉक्टर हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है - "सूरसागर के कुछ पदों से यह ध्वनि अवश्य निकलती है कि सूरदास अपने को जन्म का अन्धा और कर्म का अभागा कहते हैं, पर सब समय इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।"


रचनाएं

सूरदास की रचनाओं में निम्नलिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं -


१ सूरसागर
२ सूरसारावली
३ साहित्य-लहरी
४ नल-दमयन्ती
५ ब्याहलो

उपरोक्त में अन्तिम दो ग्रंथ अप्राप्य हैं।

नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के १६ ग्रन्थों का उल्लेख है। इनमें सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी, आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें प्रारम्भ के तीन ग्रंथ ही महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं।

सूरदास | Surdas's Collection

Total Records: 4

राखी बांधत जसोदा मैया

राखी बांधत जसोदा मैया।विविध सिंगार किये पटभूषण, पुनि पुनि लेत बलैया॥हाथन लीये थार मुदित मन, कुमकुम अक्षत मांझ धरैया।तिलक करत आरती उतारत अति हरख हरख मन भैया॥बदन चूमि चुचकारत अतिहि भरि भरि धरे पकवान मिठैया।नाना भांत भोग आगे धर, कहत लेहु दोउ मैया॥नरनारी सब आय मिली तहां निरखत नंद ललैया।सूरदास गिरिधर चिर जीयो गोकुल बजत बधैया ॥

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सूर के पद | Sur Ke Pad

सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें।

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मन न भए दस-बीस - सूरदास के पद

मन न भए दस-बीस

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हरि संग खेलति हैं सब फाग - सूरदास के पद

हरि संग खेलति हैं सब फाग।इहिं मिस करति प्रगट गोपी: उर अंतर को अनुराग।।सारी पहिरी सुरंग, कसि कंचुकी, काजर दे दे नैन।बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी, सुनि माधो के बैन।।डफ, बांसुरी, रुंज अरु महुआरि, बाजत ताल मृदंग।अति आनन्द मनोहर बानि गावत उठति तरंग।।एक कोध गोविन्द ग्वाल सब, एक कोध ब्रज नारि।छांडि सकुच सब देतिं परस्पर, अपनी भाई गारि।।मिली दस पांच अली चली कृष्नहिं, गहि लावतिं अचकाई।भरि अरगजा अबीर कनक घट, देतिं सीस तैं नाईं।।छिरकतिं सखि कुमकुम केसरि, भुरकतिं बंदन धूरि।सोभित हैं तनु सांझ समै घन, आये हैं मनु पूरि।।दसहूं दिसा भयो परिपूरन, सूर सुरंग प्रमोद।सुर बिमान कौतुहल भूले, निरखत स्याम बिनोद।।

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