हरि संग खेलति हैं सब फाग।इहिं मिस करति प्रगट गोपी: उर अंतर को अनुराग।।सारी पहिरी सुरंग, कसि कंचुकी, काजर दे दे नैन।बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी, सुनि माधो के बैन।।डफ, बांसुरी, रुंज अरु महुआरि, बाजत ताल मृदंग।अति आनन्द मनोहर बानि गावत उठति तरंग।।एक कोध गोविन्द ग्वाल सब, एक कोध ब्रज नारि।छांडि सकुच ...
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