जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 

काव्य

जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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सुन के ऐसी ही सी एक बात - शमशेर बहादुर सिंह

[हिन्दी साहित्यि हों में गुटबन्दी के एक घृणित रूप की प्रतिक्रिया]

 
मैं हार गया हूं - भगवतीचरण वर्मा

भगवतीचरण वर्मा, मैं हार गया हूं

 
जूझना बुज़दिली से बेहतर है - विजय कुमार सिंघल

जूझना बुज़दिली से बेहतर है
सनसनी बेहिसी से बेहतर है

 
लोक-नीति पर रहीम के दस दोहे  - रहीम

रहीम के दोहे--सरलार्थ सहित 

 
कुछ हाइकु - डॉ विद्या विंदु सिंह

बुलाओ मुझे
पुआल के बिछौने 
सोना चाहूँ मैं।

 
बेरोज़गार मित्र का जवाब - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi

हास्य, बेरोज़गार मित्र का जवाब, शैल चतुर्वेदी की हास्य कविता, Hasya Kavita,Shail Chaturvedi

 
मैं पावन हूँ अपने आंसू के नीर से | गीत  - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

तुम पार तरो गंगा-यमुना के तीर से 
मैं पावन हूँ अपने आंसू के नीर से

 
राम, तुम्हारा नाम - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

राम, तुम्हारा नाम कण्ठ में रहे, 
हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे, 
दुःख से त्राण नहीं माँगूँ।

 
'स-सार' संसार - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh

है असार संसार नहीं।
यदि उसमें है सार नहीं तो सार नहीं है कहीं। 
जहाँ ज्योति है परम दिव्य, दिव्यता दिखाई वहीं; 
क्या जगमगा नहीं ए बातें तारक-चय ने कहीं? 
दिखलाकर अगाधता विभु की निधि-धारायें बहीं; 
कब न छटायें उसकी सब छिति तल पर छिटकी रहीं? 
दिव्य दृष्टि सामने आवरण-भीतें सब दिन ढहीं; 
अधिक क्या कहें, मुक्ति मुक्त मानव ने पाई यहीं।

 
दायरा | हास्य कविता - नेहा शर्मा

एक बुढ्ढे को बुढ़ापे में इश्क का बुखार चढ़ गया
बुढिया को जीन्स-टॉप पहनाकर बीयर बार में ले गया
बोला, आज की पीढ़ी ऐसे ही रोमांस करती है
तू भी पी ले बीयर थोड़ा कम चढ़ती है।

 
पैरोडीदास का गीत - पैरोडीदास

सरल है बहुत चांद-सा मुख छिपाना, 
मगर चाँद सिर की छिपाना कठिन है।

 
पीड़ा का वरदान - विष्णुदत्त 'विकल

क्यों जग के वाक्-प्रहारों से हम तज दें अपनी राह प्रिये! 

 
क्या होगा | गीत - कुसुम सिनहा

सपनों ने सन्यास लिया तो 
पगली आंखों का क्या होगा! 

आंसू से भीगी अखियां भी 
सपनों में मुस्काने लगतीं। 
कितनी ही ददर्दीली श्वासें 
प्रीत जगे तो गाने लगती।
प्रीत हुई बैरागिन 
भोली श्वासों का क्या होगा!

 
इस जग में - शम्भुनाथ शेष

इस जग में भेजा था तूने 
तो जग का जीवन भी देता! 
जैसा मुझको हृदय दिया था, 
कुछ वैसे साधन भी देता!

 
सुबह हो रही है - शील

सुबह हो रही है रहेगी न रात, 
सुनाता हूँ तुमको जमाने की बात। 
जो बिकते थे अब तक टकों पर गरीब, 
धरोहर में रखते थे अपना नसीब। 
जमाना जिन्हें कह रहा था गुलाम, 
वही हैं जमाने की पकड़े लगाम।

 
मैं हर मन्दिर के पट पर - सुमित्रा सिनहा

मैं हर मन्दिर के पट पर अर्घ्य चढ़ाती हूँ,
भगवान एक पर मेरा है!

 
इसलिए तारीख ने... | ग़ज़ल - भवानी शंकर

इसलिए तारीख ने हमको कभी चाहा नहीं,
हम अकेले हैं हमारे पास चौराहा नहीं।

 
जो किसी का बुरा... - शिव ओम अंबर

जो किसी का बुरा नहीं होता, ग़ज़ल, शिव ओम अंबर

 
छाया के नहीं मिलते... - ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

छाया के नहीं मिलते दो पल भी आजकल,
डरने लगे हैं तपिश से बादल भी आजकल।

 
रात दिन यूं चला - सूर्यभानु गुप्त

रात दिन यूं चला सिलसिला झूठ का,
बन गया दोस्तो! एक क़िला झूठ का।

 

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