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गीत
गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।
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सहज गीत गाना होता तो | गीत - शंकरलाल द्विवेदी |
सहज गीत गाना होता तो, पीड़ा का यह ज्वार न होता। |
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कबीरा खैर मनाए - नसीर परवाज़ |
अंगारों पर आँसू बोयें इस बस्ती के लोग |
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