भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।

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दिन अँधेरा-मेघ झरते | रवीन्द्रनाथ ठाकुर

यहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना "मेघदूत' के आठवें पद का हिंदी भावानुवाद (अनुवादक केदारनाथ अग्रवाल) दे रहे हैं। देखने में आया है कि कुछ लोगो ने इसे केदारनाथ अग्रवाल की रचना के रूप में प्रकाशित किया है लेकिन केदारनाथ अग्रवाल जी ने स्वयं अपनी पुस्तक 'देश-देश की कविताएँ' के पृष्ठ 215 पर नीचे इस विषय में टिप्पणी दी है।

दिन अँधेरा-मेघ झरते,
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चल तू अकेला! | रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
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रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविताएं

रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविताएं - गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं का संकलन।

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विपदाओं से रक्षा करो, यह न मेरी प्रार्थना | बाल-कविता

विपदाओं से रक्षा करो-
यह न मेरी प्रार्थना,
यह करो : विपद् में न हो भय।
दुख से व्यथित मन को मेरे
भले न हो सांत्वना,
यह करो : दुख पर मिले विजय।

मिल सके न यदि सहारा,
अपना बल न करे किनारा; -
क्षति ही क्षति मिले जगत् में
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अकेला चल | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविता

अनसुनी करके तेरी बात, न दे जो कोई तेरा साथ
तो तुही कसकर अपनी कमर अकेला बढ़ चल आगे रे।
अरे ओ पथिक अभागे रे।

अकेला चल, अकेला चल, अकेला ही चल आगे रे॥
देखकर तुझे मिलन की बेर, सभी जो लें अपने मुख फेर
न दो बातें भी कोई करे, सभय हो तेरे आगे रे,
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ओ मेरे देश की मिट्टी | बाल-कविता

ओ मेरे देश की मिट्टी, तुझपर सिर टेकता मैं।
तुझी पर विश्वमयी का,
तुझी पर विश्व-माँ का आँचल बिछा देखता मैं।।

कि तू घुली है मेरे तम-बदन में,
कि तू मिली है मुझे प्राण-मन में,
कि तेरी वही साँवली सुकुमार मूर्ति मर्म-गुँथी, एकता में।।

कि जन्म तेरी कोख और मरण तेरी गोद का मेरा,
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राजा का महल | बाल-कविता

नहीं किसी को पता कहाँ मेरे राजा का राजमहल!
अगर जानते लोग, महल यह टिक पाता क्या एक पल?
इसकी दीवारें चाँदी की, छत सोने की धात की,
पैड़ी-पैड़ी सुंदर सीढ़ी उजले हाथी दाँत की।
इसके सतमहले कोठे पर सूयोरानी का घरबार,
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गूंगी

कन्या का नाम जब सुभाषिणी रखा गया था तब कौन जानता था कि वह गूंगी होगी। इसके पहले, उसकी दो बड़ी बहनों के सुकेशिनी और सुहासिनी नाम रखे जा चुके थे, इसी से तुकबन्दी मिलाने के हेतु उसके पिता ने छोटी कन्या का नाम रख दिया सुभाषिणी। अब केवल सब उसे सुभा ही कहकर बुलाते हैं।

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प्रश्न | लघुकथा

बाप श्मशान से घर लौटा।

सात वर्ष का लड़का--उघाड़े बदन, गले में सोने का ताबीज़--अकेला गली वाले जंगल के पास खड़ा था।

क्या सोच रहा था, उसे खुद नहीं मालूम।

सवेरे की घाम सामने वाले नीम की फुनगी पर दिखाई देने लगी; अमिया बेचनेवाला, गली में आवाज़ देता हुआ निकल गया।

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माँ की भाषा

जब खेलते-खेलते 
छा जाती है कोई धुन अचानक 
मेरे खिलौनों पर 
माँ की याद आती है अनायास 
यह धुन गुनगुनाती थी माँ 
मुझे झुलाते हुए झूले में 
आ जाती है माँ की याद 
जब फूलों की एक गंध 
बहने लगती है हवा में अचानक 
पतझड़ की किसी सुबह, 
सुबह-सबेरे मंदिर की घंटियों की गंध 
मेरी माँ की गंध जैसी लगती है 
कमरे की खिड़की से 
जब मैं देखता हूँ 
सुदूर नीले आसमान में 
लगता है माँ की निगाहों की स्थिरता 
छा जाती है सारे आकाश पर 
ऐसी ही है मेरी माँ की भाषा

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