जब खेलते-खेलते छा जाती है कोई धुन अचानक मेरे खिलौनों पर माँ की याद आती है अनायास यह धुन गुनगुनाती थी माँ मुझे झुलाते हुए झूले में आ जाती है माँ की याद जब फूलों की एक गंध बहने लगती है हवा में अचानक पतझड़ की किसी सुबह, सुबह-सबेरे मंदिर की घंटियों की गंध मेरी माँ की गंध जैसी लगती है कमरे की खिड़की से जब मैं देखता हूँ सुदूर नीले आसमान में लगता है माँ की निगाहों की स्थिरता छा जाती है सारे आकाश पर ऐसी ही है मेरी माँ की भाषा
-रबीन्द्रनाथ टैगोर |