एक सुबह उठता हूँ और हर कोण से ख़ुद को पाता हूँ अजनबी आँखों में पाता हूँ एक अजीब परायापन अपनी मुस्कान लगती है न जाने किसकी बाल हैं कि पहचाने नहीं जाते अपनी हथेलियों में किसी और की रेखाएँ पाता हूँ मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसा भी होता है हम जी रहे होते हैं किसी और का जीवन हमारे भीतर कोई और जी रहा होता है
- सुशांत सुप्रिय मार्फ़त श्री एच.बी. सिन्हा 5174 , श्यामलाल बिल्डिंग , बसंत रोड,( निकट पहाड़गंज ) , नई दिल्ली - 110055 मो: 9868511282 / 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com
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