( एक ) आज चारो ओर की बेचैनी से बेपरवाह जो लम्बी ताने सो रहे हैं वे सुखी हैं जो छटपटा कर जाग रहे हैं वे दुखी हैं ( दो ) आज हमारी बनाई इमारतें कितनी ऊँची हो गई हैं लेकिन हमारा अपना क़द कितना घट गया है ( तीन ) आज विश्व एक ग्लोबीय गाँव बन गया है हमने स्पेस-शटल बुलेट और शताब्दी रेलगाड़ियाँ बना ली हैं एक जगह से दूसरी जगह की दूरी कितनी कम हो गई है लेकिन आदमी और आदमी के बीच की दूरी कितनी बढ़ गई है ( चार ) आज दीयों के उजाले कितने धुँधले हो गए हैं आज क़तार में खड़ा आख़िरी आदमी कितना अकेला है ( पाँच ) आज लम्बी-चौड़ी गाड़ियों में घूम रहे हैं छोटे लोग बड़े-बड़े बंगलों में रह रहे हैं लघु-मानव बौने लोग डालने लगे हैं लम्बी परछाइयाँ
- सुशांत सुप्रिय मार्फ़त श्री एच.बी. सिन्हा 5174 , श्यामलाल बिल्डिंग , बसंत रोड,( निकट पहाड़गंज ) , नई दिल्ली - 110055 मो: 9868511282 / 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com
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