ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा मैं सज़दे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा
यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा
ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते वो सब के सब परेशाँ हैं, वहाँ पर क्या हुआ होगा
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुनकर तो लगता है कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा
कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उस के बारे में वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा
यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा
चलो अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा
- दुष्यंत कुमार |