खेत-खेत में सरसों झूमे, सर-सर बहे बयार, मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
धानी रंग से रंगी धरा, परिधान वसन्ती ओढ़े। हर्षित मन ले लजवन्ती, मुस्कान वसन्ती छोड़े। चारों ओर वसन्ती आभा, हर्षित हिया हमार, मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
सूने-सूने पतझड़ को भी, आज वसन्ती प्यार मिला। प्यासे-प्यासे से नयनों को, जीवन का आधार मिला। मस्त गगन है, मस्त पवन है, मस्ती का अम्बार, मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
ऐसा लगे वसन्ती रंग से, धरा की हल्दी आज चढ़ी हो। ऋतुराज ब्याहने आ पहुँचा, जाने की जल्दी आज पड़ी हो। और कोकिला कूँक-कूँक कर, गाये मंगल ज्योनार, मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
पीली चूनर ओढ़ धरा अब, कर सोलह श्रृंगार चली। गाँव-गाँव में गोरी नाचें, बाग-बाग में कली-कली। या फिर नाचें शेषनाग पर, नटवर कृष्ण मुरार, मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
- आनन्द विश्वास
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