मैंने लिखा कुछ भी नहीं तुम ने पढ़ा कुछ भी नहीं ।
जो भी लिखा दिल से लिखा इस के सिवा कुछ भी नहीं ।
मुझ से ज़माना है ख़फ़ा मेरी ख़ता कुछ भी नहीं ।
तुम तो खुदा के बन्दे हो मेरा खुदा कुछ भी नहीं ।
मैं ने उस पर जान दी उस को वफ़ा कुछ भी नहीं ।
चाहा तुम्हें यह अब कहूँ लेकिन कहा कुछ भी नहीं ।
यह तो नज़र की बात है अच्छा बुरा कुछ भी नहीं ।
- सुधेश
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