बदलीं जो उनकी आँखें, इरादा बदल गया । गुल जैसे चमचमाया कि बुलबुल मसल गया ।
यह टहनी से हवा की छेड़छाड़ थी, मगर खिलकर सुगन्ध से किसीका दिल बदल गया ।
ख़ामोश फ़तह पाने को रोका नहीं रुका मुश्किल मुकाम, ज़िंदगी का जब सहल गया ।
मैंने कला की पाटी ली है शेर के लिए, दुनियां के गोलन्दाजों को देखा, दहल गया ।
- निराला |