जब दुख मेरे पास बैठा होता है मैं सब कुछ भूल जाता हूँ पता नहीं सूरज और चाँद कब आते हैं और कब ओझल हो जाते हैं बादल आते भी हैं या नहीं क्या मालूम हवा गुनगुना रही होती है या शोक-गीत गा रही होती है न जाने दिशाएँ सूखे बीज-सी बज रही होती हैं या चुप होती हैं विसर्जित कर अपना सारा शोर-शराबा जब दुख मेरे पास बैठा होता है मुझे अपनी परछाईं भी नज़र नहीं आती केवल एक सलेटी अहसास होता है शिराओंं में इस्पात के भर जाने का केवल एक पीली गंध होती है भीतर कुछ सड़ जाने की और पुतलियाँ भारी हो जाती हैं न जाने किन दृश्यों के बोझ से
- सुशांत सुप्रिय मार्फ़त श्री एच.बी. सिन्हा 5174 , श्यामलाल बिल्डिंग , बसंत रोड,( निकट पहाड़गंज ) , नई दिल्ली - 110055 मो: 9868511282 / 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com |