यदि स्वदेशाभिमान सीखना है तो मछली से जो स्वदेश (पानी) के लिये तड़प तड़प कर जान दे देती है। - सुभाषचंद्र बसु।
 
मरा हूँ हज़ार मरण (काव्य)     
Author:सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

मरा हूँ हज़ार मरण 
पाई तब चरण-शरण। 
फैला जो तिमिर-जाल 
कट-कटकर रहा काल, 

अँसुओं के अंशुमाल, 
पड़े अमित सिताभरण। 

जल-कलकल-नाद बढ़ा, 
अंतर्हित हर्ष कढ़ा, 
विश्व उसी को उमड़ा, 
हुए चारु-करण सरण। 

-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश