मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। - चंद्रबली पांडेय।
 
बनमानुस की दर्दनाक कहानी  (बाल-साहित्य )     
Author:मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

आज हम तुम्हें एक बनमानुस का हाल सुनाते हैं। सामने जो तसवीर है, उससे तुम्हें मालूम होगा कि बनमानुस न तो पूरा बंदर है, न पूरा आदमी। वह आदमी और बन्दर के बीच में एक जानवर है। मगर वह बड़ा बलवान होता है और आदमियों को बड़ी आसानी से मार डालता है। वह अधिकतर अफ्रीका के जंगल में पाया जाता है।

एक दिन एक शिकारी अफ्रीका के क्लब में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था कि उसका एक दोस्त घबराया हुआ कमरे में आया और बोला--एक हब्शी बहुत दूर से यहाँ आया है और कहता है कि पास के जंगल में एक नर बनमानुस निकला है, जो सिर्फ आदमियों को मार रहा है। शिकारी ने उस हब्शी को बुलाकर पूछताछ की तो मालूम हुआा कि उबांशी जाति के एक आदमी ने उस बनमानुस के जोड़े को मार डाला है। शायद इसी लिए वह आदमियों को मार रहा है। हब्शी ने कहा-साहब ऐसे डीलडौल का बनमानुस कहीं देखने में नहीं आया था। बड़े बड़े जवानों को बात की बात में मार डालता है। ताज्जुब तो यह है कि वह चुन-चुनकर उसी जाति के आदमियों को मारता है। अब तक करीब दस उबांशियों को मार चुका है। शिकारी शेर का शिकार करने आया था, पर उसने दिल में सोचा-यह बनमानुस तो शेर से भी ज्यादा ख़ौफ़नाक है। पहिले इसी को क्‍यों न मारूं ।

दूसरे दिन उसने तड़के ही शिकार का सामान ठीक-ठाक किया और उसी हब्शी को लेकर जंगल की तरफ चल खड़ा हुआ । कई सिपाही भी मौजूद थे। वे भी अपनी छोलदारियाँ और बन्दूकें लेकर चलने को तैयार हो गये। हब्शी राह दिखाता हुआ आगे-आगे चलने लगा।

दिन भर लगातार चलने के बाद वे लोग उबांशियों के गाँव में पहुँचे । रा्सते में बहुत-से जानवर मिले, पर बनमानुस का कहीं निशान तक न मिला। अफ्रीका के सब गाँव करीब-करीब एक ही तरह के होते हैं। गाँव के बीच में उबांशियों के सरदार का झोपड़ा था, चारों ओर बाँसों से घिरा हुआ था। एक बड़े डील-डौल का आदमी कंधे पर बन्दूक रखे झोपड़े के सामने टहल रहा था ।

शिकारियों की खबर पाकर उबांशी सरदार उनसे मिलने आया और फौजी सलाम करके बोला--आाप लोग खूब आये, अब मुझे उम्मीद है कि बनमानुस जरूर मारा जायगा। हम लोगों का तो घर से निकलना मुश्किल हो गया है। शिकारी ने ग़रूर के साथ कहा- हाँ, देखो क्या होता है, आये तो इसी इरादे से हैं।
शिकारियों ने सरदार के झोपड़े के पास ही अपनी छोलदारियाँ लगा दीं और पेट देवता की पूजा करने की फ़िक्र करने लगे कि अचा- नक किसी के कराहने की आवज़ आई जैसे उसका कोई मर गया हो । शिकारी ने पूछा-यह कौन रो रहा है ?

हब्शी ने घबढ़ायी हुई आवाज़ में कहा- हुजूर, यह वही बनमानुस है । दिन भर अपने मु्र्दा जोड़े के पास बैठा रोता है और रात होते ही इधर-उघर घूमने लगता है। न मालूम किस वक्त चुपके गाँव में घुस जाता है और किसी न किसी को मार डालता है। और किसी जाति के आदमी से नहीं बोलता ।

लोग दिन भर के थके-माँदे, भूखे-प्यासे थे । बनमानुस का शिकार करने की किसे सूझती थी। जब लोग खा-पीकर फारिग़ हुए तो सलाह होने लगी कि बनमानुस का शिकार कैसे किया जाय । उबांशी सरदार ने कहा-रात को आप लोग उसे नहीं पा सकते । दिन को ही उसका शिकार हो सकता है।

शिकारियों को भी उसकी सलाह पसन्द आई । सब अपनी-अपनी छोलदारियों में घुस गये और बाहर पहरे का यह बन्दोबस्त कर दिया कि दो-दो घंटे के बाद पहरा बदल दिया जाय । शिकारी थका था, जल्‍दी ही सो गया । लेकिन थोड़ी ही देर सोया था कि उसकी नींद टूट गई और सामने एक परछाईं-सी खड़ी दिखायी दी । उसकी आंखें आग की तरह जल रही थीं। अफ़सर मे फौरन आवाज़ दी--संतरी!

पर कोई जवाब न मिला। न मालूम यह आवाज़ संतरी के कानों तक पहुँची भी या नहीं।

अफ़सर ने तुरन्त बिजली की बत्ती जलाई। उसका कलेजा सन्न हो गया। सामने छ फीट का बनमानुस खड़ा था और उसके हाथ में संतरी की बन्दूक थी, जिसकी नली बिलकुल टेढ़ी-मेढ़ी हो गई थी । वह शिकारी की ओर आँखें जमाये हुए था; जैसे सोच रहा हो कि इसे मारूं या छोड़ दूँ । उसका डरावना चेहरा देखकर शिकारी की घिग्घी बंध गई, मुँह से आवाज़ तक न निकली।

अचानक बाहर किसी चीज़ के गिरने का धमाका हुआ। शायद कोई संतरी अंधेरे में ठोकर खाकर गिर पड़ा था। बनमानुस ने झट बन्दूक फेंक दी और उछलकर छोलदारी से बाहर निकल गया। अब अफ़सर साहब के होश ठिकाने हुए। बिछावन से उठे, बन्दूक संभाली; बाहर निकले और बिजली की लालटेन लेकर बनमानुस को तलाश करने लगे। लेकिन वह वहां कहाँ था। मगर इससे ज्यादा ताज्जुब की बात यह थी कि उस संतरी का भी कहीं पता न था, जो पहरा दे रहा था।

शिकारी ने अबकी संतरी को ताकीद करदी कि खूब होशियार रहे, मगर सोने की हिम्मत न पड़ी । बिजली की रोशनी में बैठे-बैठे गप-सप करके रात काटी । दूसरे दिन तड़के सब लोग शिकार करने चले । गांव के आदमी उन्हें विदा करने के लिये गांव के बाहर तक आये । अच्छी खासी भीड़ जमा हो गई । शिकारी लोग झाड़ियों की आड़ में चलने लगे, जिसमें बनमानुस उनकी आहट पाकर कहीं भाग न जाय । हृब्शी को वह जगह मालूम न थी, जहाँ मादा बनमानुस मरी पड़ी थी । उसी के पीछे.पीछे लोग चले जा रहे थे। जाते-जाते रास्ते में एक जगह बड़ी बदबू आाने लगी। हब्शी सहम कर ठिठक गया और कान लगा कर सुनने लगा। वहीं रोने की आवाज़ सुनायी दी। शिकारी ने अपने साथियों से कहा-तुम लोग बन्दूकें तैयार रखो, मैं आगे-आगे चलता हूँ। मगर अभी दो सौ कदम भी न गया था कि उसे वह बनमानुस नजर आया । मगर वह अकेला न था। उसके जोड़े की लाश भी वहीं पड़ी हुई थी । बनमानुस उस लाश पर झुका हुआ अपने दोनों हाथों से छाती पीट-पीटकर रो रहा था । उसके चेहरे से ऐसा मालूम हो रहा था, मानो वह अपने जोड़े से कह रहा था कि एक बार फिर उठो, चलो यह देश छोड़ कर उस देश में जाकर बसें जहाँ के आदमी इतने निर्दयी, इतने कठोर नहीं हैं। जब वह देखता था कि उसके इतना समझाने पर भी मादा न बोलती है और न हिलती है, तो वह छाती पीट कर रोने लगता था ।

यह हाल देख कर शिकारी का दिल दर्द से पिघल गया। बन्दूक उसके हाथ से गिर पड़ी, शिकारी का जोश ठंढा हो गया। साथियों को लेकर वह डेरे पर लौट आया । सब लोग वहाँ बैठ कर बातें करने लगे-देखो, जानवरों में भी कितनी मुहब्बत होती है, लाश सड़ गई है, मगर नर अभी तक उसे नहीं छोड़ रहा है। उबांशियों ने यह बहुत बुरा काम किया कि उसके जोड़े को मार डाला।

अभी यही बातें हो रही थीं कि देखा कई आदमी एक लाश लिये चले आ रहे हैं। शिकारी लाश को फौरन पहचान गया । यह उस संतरी की लाश थी । मालूम हो गया कि उसी बनमानुस ने रात को उसे मार डाला है। शिकारी क्रोध से अन्धा हो गया, बोला--अब इस दुष्ट को किसी तरह न छोड़ूंगा। ऐसे खूनी जानवरों पर दया करना पाप है। आज उसका काम तमाम करके दी दम लूंगा।

यह कह कर वह फिर उसी जगह जा पहुँचा, जहाँ मादा मरी पड़ी थी। मगर अबकी बनमानुस वहाँ न दिखायी दिया। तब यह लोग उसके पैर का निशान देखते हुए उसकी खोज में चले। आखिर एक पहाड़ी के नीचे से जहाँ एक पहाड़ी नदी बहती थी, बनमानुस आता हुआ दिखायी दिया । उसकी देह से बूंद-बूंद पानी टपक रहा था। मालूम होता था अभी नहाकर निकला है। शिकारियों को देखते ही पहले तो वह गरज उठा, फिर किसी शोक में डूबे हुए आदमी की तरह छाती पीट-पीट कर रोने लगा। वह लोग चुपचाप खड़े रहे। जब वह बिल्कुल पास आ गया तो अफ़सर ने उसके कंधे पर निशाना लगाकर गोली चलाई। वह ज़ोर से चीखा और गिर पड़ा। उसका एक कन्धा जख्मी हो गया था; पर वह तुरन्त ही दूसरे हाथ के सहारे अफ़सर की तरफ़ दौड़ा। अफ़सर ने अबकी उसकी छाती पर गोली चलाई। शिकारियों ने समझा, उसे मार लिया; मगर वह झट एक चट्टान फाँदकर भागा और जंगल में घुस गया।

शाम होने को थी। अब उसे ढूँढना बेकार समझकर शिकारी डेरे की तरफ़ लौटे। गोकि यह मालूम था कि वह घायल हो गया है, फिर भी लोगों ने पहरे का बन्दोबस्त किया और खा-पीकर सोये। रात-मर सब लोग आराम से सोते रहे। अफ़सर साहब की नींद खुली ही थी कि एक हब्शी दौड़ा हुआ आया और बोला-साहब, वह तो फिर रो रहा है। अफ़सर ने ध्यान से सुना, हाँ, यह तो वही रोने को आवाज है।

लोगों ने झटपट कपड़े पहिने और बन्दूकें लेकर रवाना हो गये। उस जगह पहुँचकर ये लोग झाड़ियों की आड़ से दोनों बनमानुसों की अन्तिम प्रेम-लीला का तमाशा देखने लगे--देखा कि वह अपने जोड़े की लाश को अपने खून से रंगी हुई छाती से दबाकर रो रहा है। उसकी आंखों में नशा-सा छाया हुआ मालूम होता था, जैसे कोई शराब के नशे में चूर हो। यह दर्दनाक माजरा देखकर शिकारियों की आंखें भी आँसू से तर हो गईं। यह तो मालूम ही था कि वह अब चोट नहीं कर सकता। शिकारी उसके बिल्कुल पास चला गया कि अगर हो सके तो उसे जीता पकड़कर मरहमपट्टी की जाए। उसे देखते ही बनमानुस ने बड़ी दर्दनाक आँखों से उसकी ओर देखा, मानो कह रहा था--क्यों देरी करते हो, एक गोली और चला दो कि जल्द इस दुःख-भरे संसार से बिदा हो जाऊं?

शिकारी ने ऐसा ही किया। एक गोली से उसका काम तमाम कर दिया। इधर बंदूक की आवाज हुई, उधर बनमानुस चित हो गया। मगर आावाज के साथ ही शिकारी का दिल भी काँप उठा। उसे ऐसा मालूम हुआ, मैंने खून किया है, मैं खूनी हूँ ।

-प्रेमचंद

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