जो कुछ लिखना चाहा था वह लिख न कभी मैं पाया जो कुछ गाना चाहा था वह गीत न मैं गा पाया।
मुझको न मिला अवसर ही अपने पथ पर चलने का था दीप पड़ा झोली में अवसर न मिला जलने का।
जो दीप न जल पाता है वह क्या प्रकाश फैलाये जिसको न मिला अवसर ही वह गीत भला क्या गाये।
-कमलाप्रसाद मिश्र [फीजी के हिंदी साहित्यकार] |