Important Links
दो ग़ज़लें (काव्य) |
Author: बलजीत सिंह 'बेनाम'
फ़ोन पर ज़ाहिर फ़साने हो गए
ख़त पढ़े कितने ज़माने हो गए
इश्क सोचे समझे बिन कर तो लिया
नाज़ अब मुश्किल उठाने हो गए
बेटियाँ कोठों की ज़ीनत बन गईं
किस क़दर ऊँचे घराने हो गए
बाँट कर नफ़रत मिली नफ़रत मगर
प्यार से हासिल खज़ाने हो गए
जानते कमज़ोरियाँ माँ बाप की
आज के बच्चे सयाने हो गए
- बलजीत सिंह 'बेनाम'
ई-मेल: baljeets312@gmail.com
*मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ। आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ।